Wednesday, August 17, 2011

मौत का अहसास

मौत का अहसास
मैं, हर पल
अपने सामने खड़ी देखता हूँ उसे
बिल्कुल समीप, बहुत ही करीब
देखने में मेरी तरह, पर अजीब
एक दिन--
मैंने उससे पूछा,
क्यों करती हो मेरा पीछा
वह हँसी--
मैं नहीं करती तेरा पीछा
मैं तो तेरे साथ चल रही हूँ ।
जब से तू जन्मा है--
तभी से हूँ तेरे साथ
और रहूँगी तबतक
जबतक तू मेरे भीतर न समा जाता।
उस रात मैं अकेला था
मुझे लगा कोई नही आसपास
मैं डरा, सहमा, और
नींद की गोलियाँ खा ली
मुझे याद है रात के दो बजे थे
घड़ी की टिक टिक सुनाई दे रही थी
और मैं दर्द से कराह रहा था।
वह मुस्कुरा रही थी-
मुझे और करीब बुला रही थी।
मेरे सामने उसका
आकार बढ़ता गया-और मै
उसमें समाता गया।
फिर एक पल में
मैं उसमें विलीन हो गया
फिर तो न मैं था
और न वह थी।।।


4 comments:

  1. Shaayad sach ka wajood hi aisa hai. Tabhito ise karwaa kaha jataa hai.

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    1. यह कथा सृष्टि की है या सत्य की,
      जीवन की की है या मृत्यु की.
      यह तो है कथा सर्वस्व की,
      शून्य की है, या महाशून्य में
      समाहित अनंत सृष्टि की.
      यह कथा है निरभिमान की,
      प्रज्ञान की, विज्ञान की.
      हमारे अलौकिक ज्ञान की.
      साधुवाद इस उत्कृष्ट रचना के लिए.

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    2. हौसला अफजाई और इस कविता को समझने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आप अपने विषय में कुछ और बताएँ।

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  2. मृत्यु क्या है ?

    जन्म से मृत्यु तक का
    समय है - जीवन यात्रा.
    परन्तु मृत्यु तक सीमित,
    नहीं है - यह जीवन.

    मृत्य है - जीवन का
    एक 'विश्राम - स्थल'.
    जहां कुछ क्षण रुक कर
    भूत को टटोलने और
    भविष्यत् के गंतव्य को,
    कृत कर्म के मंतव्य को.
    पुनर्जन्म के माध्यम से
    निर्दिष्ट लक्ष्य संधान का,
    एक पुनीत द्वार है यह.

    'मृत्यु' -
    कोई विनाश नहीं भाई!
    एक सृजन है......
    'मृत्यु' अवकाश नहीं,
    ढेर सारा दायित्व है....
    'मृत्यु' नवजीवन
    प्राप्ति का द्वार है..
    'मृत्यु', अमरत्व प्राप्ति हेतु
    एक विशिष्ट अवसर है.

    'मृत्यु',
    विलाप का नहीं,
    समीक्षा का विन्दु है
    जिसके आगे अमरत्व का
    लहराता अलौकिक सिन्धु है.

    निर्दिष्ट लक्ष्य का
    स्वागत द्वार है यह और
    पारलौकिक जीवन का
    प्रारंभ विन्दु है जो नवीन
    संभावनाओं कोमुट्ठी में
    बाँध लेने की जिजीविषा
    नया बल नयी ऊर्जा का
    सतत - सहर्ष प्रदाता है.

    हाँ! मृत्यु,
    डर और भय का नहीं
    चिंतन- मनन - मंथन
    और आत्मलोचन का
    परम - पावन विंदु है.

    इस मृत्यु में,
    सौन्दर्य है कितना?
    ब्रुनो और सुकरात से पूछो.
    मृत्यु में ऊर्जा छिपी है कितनी
    भगत और आजाद से पूछो.

    कैसे जोश जगती है यह
    गुरु 'अर्जुन 'और 'तेगा' से पूछो.
    मृत्यु की सार्थकता है क्या
    ईसा - गांधी - ईमाम से पूछो.
    मृत्यु की इस सौन्दर्य पे भाई
    लाखों जीवन कुर्बान है भाई.

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